Uttar Pradesh

Father’s Day Special: संघर्ष की मूर्ति हैं ये पिता; बेटे को IAS बनाने के लिए एक ने रिक्शा चलाई-दूसरे ने बेची खैनी

पानीपत. Father’s Day 2022 Special: कहते हैं कि भगवान के बाद अगर कोई दर्जा पूजा के योग्य है तो वह माता-पिता का रिश्ता ही है। एक मां बेटे को भूखा देख तुरंत थाली लेकर दौड़ पड़ती है, वहीं पिता को चिंता होती है कि मेरा लाल जिंदगीभर भूखा न रहे। इसके लिए चाहे उसे कितना ही संघर्ष क्यों न करना पड़े। आज पितृदिवस (Father’s Day) पर शब्द चक्र न्यूज आपको 2 IAS अफसरों की कहानी से रू-ब-रू करा रहा है, जिनकी कामयाबी के पीछे उनके पिताओं का संघर्ष कभी नहीं भुलाया जा सकता। इनमें एक के पिता ने रिक्शा चलाकर तो दूसरे के पिता ने खैनी बेचकर इस मुकाम तक पहुंचाया है। आइए जानते हैं कौन हैं ये संघर्ष जीती-जागती मूर्ति…

मूल रूप से उत्तरप्रदेश के काशी के रहने वाले गोविंद जायसवाल 2007 बैच के IAS अफसर हैं। इनके पिता नारायण जायसवाल बताते हैं कि गोविंद उनकी तीन बेटियों का इकलौता भाई है। वह अलईपुरा में किराये के मकान में रहते थे और रिक्शा चलाकर परिवार का पेट पालते थे। परमात्मा ने बरकत दी और धीरे-धीरे वह 35 रिक्शा के मालिक बन गए और इन्हें किराये पर देन लग गए। पत्नी इंदु को ब्रेन हैमरेज हो गया। उसके इलाज के 20 से ज्यादा रिक्शा बेचनी पड़ी। जब गोविंद सातवीं क्लास में पढ़ रहे थे तो कुछ दिन बाद पत्नी की मौत हो गई।

Father’s Day Special: संघर्ष की मूर्ति हैं ये पिता; बेटे को IAS बनाने के लिए एक ने रिक्शा चलाई-दूसरे ने बेची खैनी
अपने पिता नारायण जायसवाल के साथ आईएएस अफसर गोविंद जायसवाल। -शब्द चक्र न्यूज

बकौल नारायण, पत्नी की मौत के बाद परिवार की आर्थिक हालत डगमगा गई। गरीबी में दो वक्त की रोटी भी ढंग से नसीब नहीं हो रही थी। जब मैं खुद गोविंद को रिक्शा पर बिठाकर स्कूल छोडऩे जाता था तो स्कूल के बच्चे मेरे बेटे को ताने देते थे। बेटे का ख्वाब आईएएस (IAS) अफसर बनने का था और जब मैं लोगों से इस बारे में बात करता तो सब हमारा मजाक बनाते थे। जैसे-तैसे बेटियों की शादी की, लेकिन तब तक सारी रिक्शा बिक गई। मेरे पास सिर्फ एक रिक्शा बची थी, जिससे चलाकर घर अपना और बेटे का पेट पालने लग गया। पैसे की तंगी के कारण गोविंद सेकंड हैंड बुक्स से पढ़ता था।

नारायण जायसवाल बताते हैं कि जैसे-तैसे बेटे ने हरिश्चंद्र यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की। इसके बाद 2006 में सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए दिल्ली चला गया। वहां पार्ट-टाइम जॉब्स करके ट्यूशन्स का खर्चा निकाला। आखिर मेहनत रंग लाई और गोविंद ने पहली कोशिश में 48वां रैंक हासिल करके IAS बनने का सपना पूरा कर दिया।

Father’s Day Special: संघर्ष की मूर्ति हैं ये पिता; बेटे को IAS बनाने के लिए एक ने रिक्शा चलाई-दूसरे ने बेची खैनी
आईएएस निरंजन कुमार दो तस्वीरों में (बाएं) अपनी पत्नी और बेटी के साथ और (दाएं) अपनी मां के साथ।

दूसरी कहानी बिहार के नवादा जिले के पकरीबरमा गांव से ताल्लुक रखते निरंजन कुमार के पिता की गांव में ही खैनी की एक छोटी सी दुकान थी, जिससे चार भाई-बहनों की पढ़ाई का खर्च चलाना अपने आप में बड़ी समस्या थी। निरंजन भी पढ़ाई के साथ-साथ वक्त निकालकर पिता का हाथ बंटाते थे। उनका नवोदय विद्यालय में सलैक्शन हो गया। वहां से दसवीं करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह पटना चले गए, लेकिन मुश्किलें एक बार फिर से निरंजन के सामने आ गई थी। एक बार फिर निरंजन को पढ़ाई के लिए पैसे को जरूरत थी, इसके लिए उन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। खुद की कोचिंग के लिए रोज कई किलोमीटर पैदल चले।

Father’s Day Special: संघर्ष की मूर्ति हैं ये पिता; बेटे को IAS बनाने के लिए एक ने रिक्शा चलाई-दूसरे ने बेची खैनी
निरंजन कुमार के माता-पिता। -फाइल फोटो

12वीं के बाद आईआईटी (IIT) में सलैक्शन हो गया तो परिवार को कुछ उम्मीद बंधी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद उन्हें कोल इंडिया में नौकरी मिल गई। इसके बाद निरंजन की शादी भी हो गई, लेकिन निरंजन का सपना तो आईएएस (IAS) बनने का था। मेहनत का फल मिला कि इस इंजीनियर ने 2017 में 728वें रैंक के साथ यूपीएससी (UPSC) क्लियर किया। उस वक्त उन्हें आईआरएस (IRS) के लिए चुना गया, लेकिन इसके बावजूद संघर्ष जारी रखा। इसके बाद 2020 में 535वें रैंक के साथ फिर से एग्जाम क्लियर किया और आखिर आईएएस (IAS) बन गए।

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