Uttarakhand

पैसा बचाने की कोशिश में ‘अभिमन्यु’ तैयार करने से बढ़कर कुछ भी नहीं है Agneepath Scheme, जानें एक्सपर्ट्स की राय

BMSahab/New Delhi

Questions On Agneepath Scheme: केंद्र की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा लाई गई अग्निपथ योजना (Agneepath Scheme) सवालात के घेरे में आ गई है।  इस नए प्रावधान को लेकर सेना में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके कुछ लोगों जैसे पूर्व वायुसेना अध्यक्ष बिरेंदर धनोआ, लैफ्टिनैंट जनरल पीआर शंकर, रिटायर्ड लैफ़्टिनैंट जनरल विनोद भाटिया और अन्य ने खासी चिंता व्यक्त की है। इनका कहना है, देश की सरकार को सोचना चाहिए कि यह सिर्फ पैसा बचाने की कोशिश में युवाओं को अभिमन्यु बनाने से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। क्या हैं ये चिंताएं, आइए जरा तफसील से समझते हैं…

ध्यान रहे 14 जून 2022 मंगलवार को देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और तीनों सेनाओं के प्रमुख ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिये अग्निपथ योजना का ऐलान किया है। इस योजना के तहत 4 साल के लिए युवाओं को सेना में भर्ती किया जाएगा। थल सेना में सोल्जर रैंक, नौसेना में नौसैनिक या सोलर रैंक पर और वायुसेना में वायु सैनिक यानि एयरमैन रैंक पर भर्ती करने का प्रस्ताव है। इसके लिए आयुसीमा साढ़े 17 साल से 21 साल तय की गई है। इस योजना के तहत सेना में शामिल होने वाले युवाओं को अग्निवीर के नाम से जाना जाएगा। इन्हें 10 हफ्ते से लेकर 6 महीने तक ट्रैनिंग दी जाएगी। इसके बाद अग्निवारों को देश के अलग-अलग हिस्सों में तैनात किया जाएगा।

रक्षा मंत्री के अनुसार अग्निपथ योजना के तहत युवाओं को पहले साल चार लाख 76 हजार रुपए का सालाना पैकेज मिलेगा, जो चार साल में बढ़कर 6 लाख 92 हजार रुपए तक पहुंच जाएगा। अगर इसे मासिक वेतन में विभाजित किया तो 50 हजार रुपए से अधिक की सैलरी होगी। इसके बाद 25 फ़ीसदी युवाओं को बाद में रिटेन किया जाएगा, यानि 100 में से 25 लोगों को पूर्णकालिक सेवा का मौक़ा मिलेगा और 75 प्रतिशत सैनिक इस सेवा से बाहर होंगे तो उन्हें सेवा निधि के रूप में 11.7 लाख रुपए दिए जाएंगे। गृह मंत्रालय ने ट्वीट करके कहा है कि अग्निपथ योजना युवाओं के उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक दूरदर्शी और स्वागत योग्य निर्णय है, इसलिए इस योजना में चार साल पूरा करने वाले अग्निवीरों को सीएपीएफ और असम राइफल्स में भर्ती में प्राथमिकता देने का निर्णय लिया है।

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भले ही रक्षामंत्री के मुताबिक उनके लिए रोजगार के अवसर मुहैया कराने में सेना उनकी मदद करेगी, लेकिन अगर पूरा विश्लेषण किया जाए तो यह योजना रक्षा बलों का खर्च और उम्र घटाने के प्रयास के अलावा और कुछ भी नहीं है। शायद यही वजह है कि रक्षा विशेषज्ञों ने इस योजना पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।

ये हैं बड़ी चिंताएं

  • सबसे पहले तो इस योजना की वजह से सेना में ‘नौसिखिए’ जवानों की संख्या बढ़ जाएगी, जो दुश्मन देशों की तरफ से मिलने वाली चुनौतियों का सामना करने में असक्षम हो सकते हैं। जैसा कि साफ है नई योजना के तहत भर्ती होने वाले अग्निवीरों को युद्ध के मोर्चे पर भी तैनात किया जा सकता है और उनकी भूमिका किसी अन्य सैनिक से अलग नहीं होगी। यही सबसे बड़ी समस्या की वजह बनने वाला है। अभी तक प्रशिक्षण की अवधि एक साल की है, वहीं नई योजना में 10 सप्ताह से छह महीने तक की प्रशिक्षण अवधि रहेगी। दूसरी ओर एक फिट जवान की ड्यूटी 10 से 15 साल मानी जा रही है। वो इस बीच अच्छा-खासा अनुभव जुटा चुके होते हैं। इनके मुकाबले महज 4 साल का अनुभव हर कोई समझ सकता है कि छोटा ही होता है।
  • दूसरी विपत्ति समाज के ‘सैन्यीकरण’ की खड़ी हो सकती है, क्योंकि जब एक बड़ी संख्या में हथियार चलाने के लिए प्रशिक्षित युवा बेरोजगार होंगे तो क़ानून-व्यवस्था से जुड़ी समस्या नहीं आएगी, ऐसी आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। भले ही सरकार रोजगार देने में मदद की बात कह रही है, लेकिन सोचने वाली बात यह भी है कि आज भी अनेक पूर्वसैनिक यहां-वहां 5 से 10 हजार रुपए की सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करके अपने दिन तोड़ रहे हैं। अगर रोजगार नहीं मिला तो क्या भरण-पोषण के लिए एकमुश्त मिलने वाली राशि पर्याप्त है और जब पेट नहीं पलेगा तो फिर वह गलत रास्ता भी अख्तियार कर सकता है।
  • तीसरी बड़ी चिंता ये है कि इस योजना के कारण सशस्त्र बलों की सदियों पुरानी रैजिमैंटल संरचना बाधित हो सकती है। गौरतलब है कि 2017 में भारत के रक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी एक बयान में हमारी आर्मी में 12.64 लाख, एयरफोर्स में 1.55 लाख और नेवी में 84 हजार जवान हैं। सेना में अभी जो जवान भर्ती होते हैं, उन्हें 42 हफ्तों की सख्त ट्रैनिंग दी जाती है। असल में 5 से 6 साल की ड्यूटी के बाद जवान यूनिट का हिस्सा बन पाते हैं। उन्हें मालूम होता है कि अब सेना ही उनका घर है इसलिए उनका जज्बा और डैडिकेशन बहुत हाई लेवल का होता है।

किसने कैसे किया रिएक्ट

पूर्व वायुसेना अध्यक्ष बिरेंदर धनोआ ने ट्वीट किया है, ‘पेशेवर सेनाएं आमतौर पर रोज़गार योजनाएं नहीं चलाती….सिर्फ़ कह रहा हूं’।

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पैसा बचाने की कोशिश में ‘अभिमन्यु’ तैयार करने से बढ़कर कुछ भी नहीं है Agneepath Scheme, जानें एक्सपर्ट्स की रायलैफ्टिनैंट जनरल पीआर शंकर ने एक आर्टिकल में लिखा है, ;ये योजना बिना पर्याप्त कर्मचारी और क्षमता के शुरू की जा रही है। इसके तहत कम प्रशिक्षित युवा किसी सबयूनिट का हिस्सा बनेंगे और फिर बिना किसी भावना के ये अपनी नौकरी सुरक्षित रखने की दौड़ में शामिल हो जाएंगे। क्या ऐसे सैनिक से ब्रह्मोस/पिनाका/वज्र जैसे हथियार प्रणाली को चलाने की उम्मीद की जाएगी, जिसे वो संभाल नहीं सकता है और पाकिस्तान-चीनियों के सामने अपनी रक्षा करने की भी आशा की जाएगी. हम भले ही अभिमन्यु बना रहे हो लेकिन वो चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाएगा’।

लैफ्टिनैंट जनरल विनोद भाटिया (रिटायर्ड) कहते हैं, मेरे हिसाब से 1.52 लाख करोड़ रुपए का पेंशन बिल बचाने के लिए अग्निपथ स्कीम को लाया गया है। इससे हमारी डिफेंस की ताकत कम होगी। जिन जंगल, पहाड़ों और हाई एल्टीट्यूट में अभी हमारे जवान दुश्मनों को धूल चटाते हैं, वहां 4 साल के लिए भर्ती होने वाले ये जवान कैसे काम कर पाएंगे। नए लड़कों के टैक्नोफ्रैंडली होने की बात कही जा रही है, लेकिन इन जगहों पर टैक्नोलॉजी नहीं, बल्कि जज्बात और स्पैशलाइजेशन की जरूरत होती है, जो पूरे डैडिकेशन और प्रॉपर ट्रैनिंग से ही आता है।

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एक ट्वीट में विनोद भाटिया ने लिखा है, ‘सशस्त्र बलों के लिए ख़तरे की घंटी। इसका पायलट प्रोजैक्ट लाए बिना ही लागू कर दिया गया। समाज के सैन्यीकरण का खतरा है। हर साल क़रीब 40 हज़ार युवा बेरोज़गार होंगे। ये अग्निवीर हथियार चलाने में पूरी तरह प्रशिक्षित नहीं होंगे। अच्छा विचार नहीं है। इससे किसी को फ़ायदा नहीं होगा’।

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