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World Cycle Day: दुनिया के कई देशों में साइकल से ऑफिस जाने पर पैसे देती है कंपनी, कैसे हुई परम्परा शुरू

फीचर डैस्क. World Cycle Day: एक वक्त था, जब लोग या तो पैदल आते-जाते थे या थोड़ी आर्थिेक कंडीशन ठीक होती तो साइकल पर सवार हो जाते थे। धीरे-धीरे वक्त बदला तो लोग साइकल से मोटरसाइकल और कार पर आ गए। अब फिर से माहौल बदल रहा है तो लोग एक बार फिर साइकल पर ही चलना पसंद करने लग गए हैं। वजहें सबकी अपनी-अपनी हैं। कोई डीजल-पैट्रोल महंगा होने के चलते तो कोई किसी और कारण से साइकल को प्रोमोट (Promote) कर रहा है। आज वर्ल्ड साइकल-डे के मौके पर शब्द चक्र न्यूज आपको एक ऐसी परम्परा से रू-ब-रू करा रहा है, जिसमें साइकल से ऑफिस आने-जाने पर कंपनी की तरफ से कर्मचारी को पैसे दिए जाते हैं। इस परम्परा को सबसे पहले नीदरलैंड ने शुरू किया था, लेकिन बाद में कई और देशों ने भी अपना लिया। ऐसे हुई थी जिंदगी को बचाने की परम्परा शुरू…

World Cycle Day: दुनिया के कई देशों में साइकल से ऑफिस जाने पर पैसे देती है कंपनी, कैसे हुई परम्परा शुरू
2017 में नीदरलैंड दौरे के बीच वहां के पीएम ने हमारे पीएम को ये साइकल गिफ्ट किया था।

बता दें कि नीदरलैंड एक ऐसा देश है, जहां सड़कों पर आपको दूसरे वाहनों की अपेक्षा साइकलों की संख्या ज्यादा दिखाई देगी। वहां साइकल के लिए खास सड़कें और नियम हैं। यहां तक कि देश के प्रधानमंत्री भी साइकल से संसद आना-जाना करते हैं। नीदरलैंड में 22,000 मील की रिंग रोड हैं। इस देश में लोग लंबी दूरी भी साइकलों से ही तय कर लेते हैं। एम्स्टर्डम और अन्य सभी डच शहरों में ‘साइकल सिविल सेवक’ नामित किए गए हैं, जो नेटवर्क को बनाए रखने और सुधारने के लिए काम करते हैं। दुनियाभर में मशहूर नीदरलैंड के साइकल टूरिज्म से प्रभावित होकर ही उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव अपने राज्य में साइकल ट्रैक बनवाने के पक्षधर रहे हैं। अखि‍लेश यादव ने वहां का साइकल ट्रैक भी देखा। ज्यादा रोचक बात एक और यह भी है कि जून 2017 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीदरलैंड के दौरे पर गए थे तो वहां के प्रधानमंत्री मार्क रूट ने मोदी को साइकल गिफ्ट किया था।

 

अब बात आती है नीदरलैंड में साइकल टूरिज्म की शुरुआत की तो वह अपने आप में प्रेरक कहानी है। दरअसल, 70 के दशक की शुरुआत में नीदरलैंड में कारों की संख्या अचानक बढ़ गई। रोड एक्सीडैंट के शिकार लोगों में एक साल में ही 500 से ज्यादा बच्चे मौत के मुंह में चले गए। इन बच्चों की मौत ने नीदरलैंडवासियों को अंदर तक झकझोर दिया। लोगों में सड़कों पर बेतरतीब आक्रोश भरा था। धीरे-धीरे यह आक्रोश आंदोलन की शक्ल लेने लगा। इसे किंडरमूर्द आंदोलन कहा गया। इसका मतलब है ‘बाल हत्या रोको’। इसमें अहिंसक तरीके से सड़कों पर लोगों ने साइकल रैलियां निकालनी शुरू कर दी।

अब नीदरलैंड में साइकल से ऑफिस जाने पर कर्मचारी को कंपनी की तरफ से हर किलोमीटर के बदले 0.22 डॉलर अलग से मिलते हैं। वहां की सरकार ने कंपनियों को सख्त निर्देश दिया है कि वह इस नियम का पालन करें। इसी से प्रेरित होकर यूरोप के भी कई देशों में ‘साइकल टू वर्क स्कीम’ लागू हो गई। कई देशों में अगर आप साइकल खरीदने जाते हैं तो आपको टैक्स में भारी छूट दी जाती है। साइकलिंग का प्रचार होने से इन देशों की निर्भरता पैट्रोल-डीजल पर कम हो रही है। इंग्लैंड, बैल्जियम की सड़कों पर आपको बड़ी संख्या में लोग साइकल की सवारी करते दिख जाएंगे।

World Cycle Day: दुनिया के कई देशों में साइकल से ऑफिस जाने पर पैसे देती है कंपनी, कैसे हुई परम्परा शुरू
नीदरलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रूट को अक्सर ऐसे साइकलिंग करते देखा जा सकता है। वह संसद भी साइकल पर आते-जाते हैं।

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