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Guru Purnima Special: इस गुरु पूर्णिमा पर जानिए राधा स्वामी से राम रहीम तक का 161 साल का सारा इतिहास, ऐसे बना था डेरा सच्चा सौदा

24 अगस्त 1818 को उत्तर प्रदेश के आगरा स्थित पन्नी गली में जन्मे परम पुरुष पूरण धनी शिव दयाल सिंह सेठ ने बरसों के अनुभवों के आधार पर 15 फरवरी 1861 को बसंत पंचमी के दिन राधा स्वामी सत्संग की शुरुआत की। इस नामकरण के पीछे वैसे तो कई मान्यताएं हैं। जैसे राधा स्वामी यानि भगवान श्री कृष्ण का नाम इनमें से एक है, लेकिन इसी के साथ अर्से से चली आ रही एक धारणा बड़ी ही दिलचस्प है। इतिहास के जानकारों की मानें तो बचपन से ही शब्द योग के अभ्यास में लीन रहने वाले शिव दयाल सिंह सेठ की अर्धांगिनी का नाम भी राधा था। हालांकि इस मत पर थोड़ा संशय है। खैर जो भी हो, मूल बात यही है कि राधा स्वामी के नाम से प्रभु का सिमरन आगरा से शुरू हुआ था।  15 जून 1878 को पहले गुरु बाबा शिव दयाल अपनी सांसारिक भूमिका पूरी कर प्रभुचरणों में चले गए।

Guru Purnima: इस गुरु पूर्णिमा पर जानिए राधा स्वामी से राम रहीम तक का 161 साल का सारा इतिहास, ऐसे बना था डेरा सच्चा सौदा

इसके 11 साल बाद 1889 में सेना से रिटायर उनके शिष्य जयमल सिंह ने पंजाब आकर ब्यास नदी के किनारे एक कुटिया बनाकर भक्तों को नामदान देना शुरू कर दिया। भक्तों की संख्या बढ़ती ही चली गई। 1903 तक उन्होंने राधा स्वामी के नाम से सत्संग करने के बाद 1839 में जन्मे बाबा जयमल सिंह भी भक्तों से विदा ले गए। इसके बाद सत्संग की कमान उनके शिष्य सावन सिंह ने संभाली, जिनका जन्म 27 जुलाई 1958 को हुआ था। 2 अप्रैल 1948 को सावन सिंह जी भी स्वधाम लौट गए। राधा स्वामी सत्संग के चौथे गुरु के रूप में सावन सिंह के शिष्य बाबा जगत सिंह ने जिम्मेदारी संभाली, जिसे वह सिर्फ और सिर्फ 3 साल ही निभा सके।

बाबा सावन सिंह के गद्दीनशीं होते हुए राधा स्वामी सत्संग में तीन विचारधाराएं पनप गई। नतीजा यह हुआ कि 1925 में सावन सिंह के शिष्य तारा चंद ने हरियाणा के भिवानी में राधा स्वामी सत्संग की शुरुआत की, लेकिन एक अलग नाम राधा स्वामी दिनोद के साथ। आज यह बहुत बड़ी धार्मिक संस्था है। 1948 में दूसरे शिष्य कृपाल सिंह ने दिल्ली में सवान कृपाल मिशन की शुरुआत कर ली।

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2 अप्रैल 1949 को एक और शिष्य बाबा खेमामल ने हरियाणा के सिरसा में सच्चा सौदा के नाम से छोटी सी कुटिया में सत्संग शुरू कर दिया। उन्हें हम बाबा मस्ताना शाह के नाम से भी जानते हैं। मस्ताना शाह की परम्परा को सतनाम सिंह ने आगे बढ़ाया और उनका शिष्यत्व हासिल करके डेरा सच्चा सौदा को ऊंचाइयों तक पहुंचाने के बाद गुरमीत राम रहीम सिंह इस वक्त साध्वियों के यौन शोषण, पत्रकार रामचंद्र छत्रपति और डेरे के मैनेजर रणजीत सिंह के कत्ल के मामलों में मरते दम तक की कैद की सजा रोहतक के सुनारियां गांव के पास स्थित जिला जेल में काट रहा है।

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राम रहीम को लेकर एक बात प्रचलित है कि गद्दी सौंपते वक्त गुरु सतनाम सिंह ने इस परम्परा को बिजनेस से नहीं जोड़ने की बात कही थी। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि गुरु आज्ञा नहीं मानने पर डेरा बिखर जाएगा। आज डेरा सच्चा सौदा सिरसा की कहानी किसी छिपी नहीं है। दूसरी ओर डेरा सच्चा सौदा की परम्परा का मूल यानि, राधा स्वामी सत्संग ब्यास का तीन अलग मत निकल जाने के बावजूद वही सफर जारी है, जो यहां ब्यास नदी के किनारे बाबा जयमल सिंह ने शुरू किया था।

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जुलाई 1884 में जन्मे बाबा जगत सिंह भी बाबा सावन सिंह के ही शिष्य थे। उन्होंने 1951 में बाबा सावन सिंह के देहावसान के बाद सत्संग की परम्परा को जारी रखा, मगर 23 अक्टूबर 1951 को वह भी सांसारिक भूमिका पूरी कर गए। इसके बाद 1990 तक बाबा चरण सिंह इस मत के पांचवें गुरु के रूप में भक्तों को नामदान देते रहे। उनका जन्म 12 दिसम्बर 1916 को पंजाब में ही सिख मान्यता वाले एक ग्रेवाल परिवार में हुआ था। बाबा चरण सिंह के बाद 1990 से अब तक मोगा में जन्मे-पले उनके भानजे गुरिंदर सिंह इस परम्परा को न सिर्फ जारी रखे हुए हैं, बल्कि इतना बढ़ा दिया कि आज देश-दुनिया में जब भी कहीं राधा स्वामी सत्संग ब्यास का नाम आता है तो शीष अदब से झुक जाता है।

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