Haryana

हरियाणा के दो गांव, जहां कोई भी तम्बाकू उत्पाद को हाथ तक नहीं लगाता

पानीपत. आज विश्व तम्बाकूरोधी दिवस है। इस खास मौके पर Shabda Chakra News आपको हरियाणा के दो ऐसे गांवों की परम्परा से रू-ब-रू करा रहा है, जहां कोई भी तम्बाकू उत्पाद जैसे बीड़ी-सिगरेट आदि को हाथ तक नहीं लगाता। कोई मेहमान भी आ जाता है और मजबूरी में उसकी आवभगत में ऐसी चीज उपलब्ध करानी भी पड़ती है तो उसे भी चिमटे वगैरह से पकड़ाते हैं। बाद में हाथ भी धोते हैं। कैसे संभव है यह, आइए थोड़ा विस्तार से बताते हैं…

इस बात में कोई दो राय नहीं कि हुक्का हरियाणा के जाट समुदाय की वजह से ज्यादा प्रचलन में है, लेकिन बावजूद इसके प्रदेश के दो गांव ऐसे हैं, जहां हुक्का तो दूर की बात, बीड़ी-सिगरेट या दूसरे किसी भी तम्बाकू उत्पाद को कोई हाथ तक नहीं लगाता। ये गांव हैं जींद जिले का खेड़ी बुल्ला और कैथल का मालखेड़ी। इन गांवों का इतिहास बड़ा ही रोचक रहा है। इनमें खेड़ी बुल्ला को कैथल रियासत के राजा उदय सिंह के मंत्री ने तो मालखेड़ी को खुद सेना के जनरल जीवन सिंह ने बसाया था। यह राजा उदय सिंह की वैदिक सभ्यता का ही प्रतीक है कि उनके करीबी भी तमाम व्यसनों से दूर रहते थे। इसी परम्परा का हिस्सा है कि इन दोनों गांवों में सदियों से किसी ने आज तक किसी भी तम्बाकू उत्पाद को छूआ तक नहीं है।

कैथल जिले के गांव मालखेड़ी के पूर्व सरपंच शमशेर सिंह, खजान सिंह और गुरदेव सिंह ने बताया कि इस गांव को 1772 में सरदार जीवन सिंह ने बसाया था। पूर्व सरपंच दर्शन सिंह मालखेड़ी ने बताया कि इस गांव में जीवन सिंह की 11वीं पीढ़ी चल रही है और किसी ने भी इस परपंरा को नहीं तोड़ा। गांव की दुकानों पर आज भी बीड़ी सिगरेट नहीं मिलती। पहले तो बाहर से आने वाले मेहमानों के लिए एक हुक्का भी रखा था, लेकिन अब वह भी बंद कर दिया गया है। इस परम्परा को न सिर्फ जाट समुदाय, बल्कि दूसरी जातियां भी निभा रही हैं। युवा शीशपाल और मोहित ने कहा कि बुजुर्गों ने अच्छी परंपरा शुरू की थी।

गांव में दमा और खांसी का नहीं है कोई मरीज

यह भी बड़ी बात है कि गांव में दमे, खांसी और कैंसर का कोई भी मरीज नहीं है। जहां तक इसके कारण की बात है, पूर्व सरपंच दर्शन सिंह ने बताया कि उनके बुजुर्गों ने शुरुआत से ही हुक्का, बीड़ी और नहीं पीते थे, इसलिए इस गांव में दमा और खांसी का कोई भी मरीज नहीं है। साथ ही दर्शन सिंह मालखेड़ी आर्य समाज से भी जुड़े हैं और समय-समय पर गांव में नशा विरोधी अभियान भी चलाते हैं।

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