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US Dollar के मुकाबले अब तक निचले Level पर आया रुपया, RBI के इंटरनैशनल ट्रेड संबंधी इस फैसले मिलेगी INR को मजबूती

नई दिल्ली. हमें हमेशा एक ही चिंता रहती है कि डॉलर (Dollar) के मुकाबले भारतीय करैंसीे रुपया (INR) आए दिन कमजोर हो रहा है। अब वक्त आ गया है कि इस कुश्ती में रुपए (Rupees) की जीत हो और डॉलर (Dollar) कमजोर पड़े। दरअसल, सोमवार को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने फैसला किया है कि इंटरनैशनल ट्रेड की सैटलमैंट (Settlement) रुपए में ही होगी। आरबीआई के सूत्रों की मानें तो भारत से निर्यात बढ़ाने पर जोर और भारतीय रुपए में वैश्विक कारोबारी समुदाय की बढ़ती दिलचस्पी को ध्यान में रखते हुए वैश्विक व्यापार को बढ़ाने के लिए यह तय किया गया है कि बिल बनाने, भुगतान और रुपए में आयात और निर्यात के निपटान के लिए एक अतिरिक्त इंतजाम किया जाए।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने नई व्यवस्थ्ज्ञा को सिरे चढ़ाने के लिए एडी बैंकों को विदेशी एक्सचेंज मैनेजमेंट के तहत भारत में वोस्ट्रो अकाउंट खोलने की अनुमति दे दी है। इस फैसले के बाद भारत के आयातकों को भारतीय रुपए में पेमैंट करना होगा। परिपत्र के मुताबिक व्यापार सौदों के समाधान के लिए संबंधित बैंकों को पार्टनर कारोबारी देश के अभिकर्ता बैंक के विशेष रुपया वोस्ट्रो खातों की जरूरत होगी। इस व्यवस्था के जरिये भारतीय आयातकों को विदेशी विक्रेता या आपूर्तिकर्ता से वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति के इन्वॉयस या बिल के एवज में भारतीय रुपए में भुगतान करना होगा, जिसे उस देश के अभिकर्ता बैंक के खास वोस्ट्रो खाते में जमा किया जाएगा। इसी तरह विदेश में वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति करने वाले निर्यातकों को उस देश के निर्दिष्ट बैंक के खास वोस्ट्रो खाते में जमा राशि से भारतीय रुपए में भुगतान किया जाएगा। इस व्यवस्था से भारतीय निर्यातक विदेशी आयातकों से अग्रिम भुगतान भी रुपए में ले सकेंगे।

उधर, मंगलवार को रुपया अमेरिकी डॉलर(American Dollar) के मुकाबले 13 पैसे की गिरावट के साथ 79.57 पर पहुंच गया। यह अब तक सबसे निचला स्तर है। हालांकि इस बारे में विशेषज्ञों की मानें तो व्यापार घाटे (Trade Deficit) में इजाफा, विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट और विश्व बाजार में ऊर्जा की कीमतों से भी रुपए में लगातार गिरावट आ रही है। अभी अस्थिरता का यह दौर जारी रहेगा और हो सकता कि एक अमेरिकी डॉलर 80 रुपए के करीब भी आ जाए। वहीं यूक्रेन और रूस की जंग की वजह से पनपे ऊर्जा संकट के चलते यूरो भी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 20 साल के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है। अब इन दोनों की कीमतें लगभग बराबर हो गई हैं।

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