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Surprising Fact: ये चीज चुराने के लिए पिटी थी चीनी फौज; कीमत और फायदे जानकर चौंक जाएंगे

नई दिल्ली. पिछले दिनों अरुणाचल प्रदेश में चीनी सैनिकों को लाठियां खाते और फिर पीठ दिखाकर भाग जाते तो सबने देखा होगा, लेकिन क्या कोई इसके पीछे की वजह जानता है? भई ये लोग एक खास औषधि चुराने के लिए यहां घुसते हैं और फिर मुंह की खाकर लौट जाते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ था, पर गजब की बात यह भी है कि इस हैरानीजनक तथ्य के बारे में शायद ही कोई जानता होगा। आइए बताते हैं कि ऐसी कौन सी देसी दवाई है, जो चीनियों को पिटने के लिए मजबूर करती है…

दरअसल, हाल ही में सामने आई इंडियन थिंक टैंक IPCSC की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीनी सैनिक कॉर्डिसैप्स चुराने की फिराक में भारतीय क्षेत्र में दाखिल हो जाते हैं। इसे हिंदी में कीड़ा जड़ी और आम बोलचाल की भाषा में हिमालयन वियाग्रा भी कहा जाता है। नेपाल और तिब्बत में इसे यारशागुंबा कहते हैं। इसका मतलब उत्तराखंड में गर्मियों की घास, सर्दियों का कीड़ा और कीड़ा जड़ी है।

नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मैडिसिन के मुताबिक कीड़ा जड़ी मुख्य रूप से भारतीय हिमालय के क्षेत्र में सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में 4500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर और दक्षिण-पश्चिम चीन में किंघई-तिब्बती पठार में पाई जाती है। नेपाल और भूटान में भी बहुत से हिस्सों में यह औषधि मिल जाती है। इस ऊंचाई पर पेड़ उगने बंद हो जाते हैं लेकिन छोटी-छोटी घास बहुतायत में होती है। मई से जुलाई में बर्फ पिघलने के बाद कीड़ा जड़ी के उगने का चक्र शुरू जाता है।

खास बात यह है कि चीन और भारतीय हिमालय वाले इलाकों में पारंपरिक चिकित्सक किडनी और नपुंसकता जैसी बीमारियों में इसका इस्तेमाल करते हैं। कीड़ा जड़ी के फायदे के बारे में सबसे पहले 15वीं शताब्दी के तिब्बती औषधीय ग्रंथ ‘एन ओशन ऑफ एफ्रोडिसियाकल क्वालिटीज’में किया गया है। यही वजह है कि चीन, भारत, भूटान और नेपाल के कई इलाकों में कीड़ा जड़ी की काफी ज्यादा डिमांड है। न्यूज मैग्जीन द वीक के मुताबिक इंटरनैशनल मार्केट में 1 किलो कीड़ा जड़ी की कीमत 65 लाख रुपए तक है। 2009 तक इसकी कीमत लगभग 10 लाख रुपए थी। 2022 में कीड़ा जड़ी की मार्केट वैल्यू करीब 1,072.50 मिलियन डॉलर, यानी 107 करोड़ रुपए आंकी गई है।

हालांकि, स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसके कुछ खास फायदे नहीं बताते, लेकिन वैज्ञानिकों को कॉर्डिसैप्स में पाए जाने वाले बायोएक्टिव मॉलिक्यूल कॉर्डिसैपिन से बहुत उम्मीद है। माना जा रहा है कि एक दिन यह नए और प्रभावी एंटीवायरल और एंटी-कैंसर उपचार में बदल सकता है। हैल्थ वैबसाइट हैल्थलाइन की मानें तो चीन में पारंपरिक चिकित्सा में सदियों से थकान, बीमारी, किडनी इनफैक्शन और सैक्स पावर बढ़ाने के लिए कीट और फंगस के अवशेषों के प्रयोग किया जाता है। चीन में कीड़ा जड़ी का इस्तेमाल प्राकृतिक स्टेरॉयड की तरह किया जाता है।

इसमें प्रोटीन, पैप्टाइड्स, अमीनो एसिड, विटामिन B-1, B-2 और B-12 जैसे पोषक तत्व बहुतायत में पाए जाते हैं। हैरानीजकनक पहलू तो यह भी है कि यह डोप टैस्ट में भी पकड़ में नहीं आता। ये करामाती जड़ी 2009 में स्टुअटगार्ड वर्ल्ड चैंपियनशिप के दौरान भी सुर्खियों में आई थी। चैंपियनशिप में 1500 मीटर, 3000 मीटर और 10 हजार मीटर वर्ग में चीन की महिला एथलीटों के रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन किया था। उनकी ट्रेनर मा जुनरेन ने मीडिया में बयान दिया था कि उन्हें यारशागुंबा यानी कीड़ा जड़ी को नियमित रूप से खिलाया गया था।

वैसे तो चीन कीड़ा जड़ी का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है, लेकिन इंडो पैसिफिक सैंटर फॉर स्ट्रैटैजिक कम्युनिकेशन्स के मुताबिक पिछले दो साल में चीन के सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्र किंघाई में फंगस की कमी से कीड़ा जड़ी की फसल में काफी कमी देखी गई है। हालांकि पिछले एक दशक में मांग तेजी से बढ़ी है। IPCSC के मुताबिक 2010 और 2011 में चीन की प्रोविंशियल मीडिया इसका उत्पादन 1.5 लाख किलो बताया गया था। 2017 में कीड़ा जड़ी का 43,500 किलो उत्पादन हुआ था। अब 41,200 किलो कीड़ा जड़ी का उत्पादन आंका जा रहा है। किंघाई में चीनी कॉर्डिसेप्स कंपनियां हाल के सालों में स्थानीय लोगों को लाखों युआन का भुगतान कर रही हैं, ताकि कीड़ा जड़ी की कटाई के लिए पूरे पहाड़ों को बंद कर दिया जा सके। एक्सपर्ट का कहना है कि ज्यादा डिमांड और लिमिटेड रिसोर्स की वजह से कीड़ा जड़ी की अधिक कटाई हुई है। इसकी वजह से चीन में 2018 से ही इसके उत्पादन में कमी देखने को मिली। इस दौरान 41,200 किलो कीड़ा जड़ी का उत्पादन हुआ जो 2017 के मुकाबले 5.2% कम है।

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