Science And Technology

धरती से जल्द ही दौड़ेंगी चंद्र और मंगल एक्सप्रेस, जापान के वैज्ञानिकों ने किया प्रोजेक्ट पर काम शुरू

टोक्यो. चांद पर नहीं पहुंच पाना अब बीते जमाने की बात हो गई है। अब वहां न सिर्फ आना-जाना आसान हो जाएगा, बल्कि रहन-सहन में भी कोई दिक्कत नहीं आएगी। एकदम धरती जैसा माहौल मिलेगा और सब धरती से चलने वाली दो खास ट्रेनों चंद्र एक्सप्रेस और मंगल एक्सप्रेस के जरिये संभव होगा। ये सब सुनने में अजीब लग रहा है, लेकिन है सोलह आने सच। दुनिया का सबसे ज्यादा तकनीकी एक्सपर्ट देश जापान आपके सपनों के इस प्रोजेक्ट को सिरे चढ़ाने के लिए जुट चुका है।

अंतरराष्ट्रीय सूत्रों के मुताबिक जापान की क्योटो यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने काजिमा कंस्ट्रक्शन कंपनी के साथ टाईअप करके एक प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है। इस प्रोजेक्ट के तहत टीम ने जीरो और लो ग्रेविटी वातावरण में मानव मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम के कमजोर होने से रोकने के लिए धरती जैसी सुविधा वाली ‘ग्लास’ आवास संरचना विकसित करने की घोषणा की है। इससे अंतरिक्ष में रहना आसान हो जाएगा। हालांकि इस योजना के तहत ग्लास और अंतर-ग्रहीय ट्रेनों का प्रोटोटाइप बनाने में लगभग 30 साल लग जाएंगे।

धरती से जल्द ही दौड़ेंगी चंद्र और मंगल एक्सप्रेस, जापान के वैज्ञानिकों ने किया प्रोजेक्ट पर काम शुरू

साथ ही क्योटो यूनिवर्सिटी और काजिमा कंस्ट्रक्शन कंपनी ने धरती पर मौजूद सभी सुविधाओं को अंतरिक्ष में सैटल करके वहां रहने योग्य एक संरचना तैयार करने का भी लक्ष्य स्थापित किया है। इस कोनिकल संरचना का नाम ‘ग्लास’ है। ग्लास के अंदर बनावटी ग्रेविटेशन, ट्रांस्पोर्ट सिस्टम, पेड़-पौधे और पानी भी उपलब्ध होगी। पृथ्वी पर मौजूद सभी सुविधाओं को अंतरिक्ष में बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इस संरचना को चांद पर ‘लूनाग्लास’और मंगल पर ‘मार्सग्लास’कहा जाएगा। यह एक उल्टा कोन है, जो पृथ्वी के रीयल ग्रेविटेशन के प्रभाव की नकल करते हुए एक सेंट्रीफ्यूगल पुल बनाने के लिए घूमेगा और धरती जैसी ग्रेविटेशन पैदा करेगा। इस ग्लास की उंचाई लगभग 1300 फीट और रेडियस 328 फीट होगी। हालांकि अनुमान है कि इस व्यवस्था पर काम शुरू होने में 100 साल के करीब का वक्त लग जाएगा।

धरती से जल्द ही दौड़ेंगी चंद्र और मंगल एक्सप्रेस, जापान के वैज्ञानिकों ने किया प्रोजेक्ट पर काम शुरू

टीम एक इंटरप्लैनेटरी ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम बनाने पर भी काम करेगी, जिसे ‘हेक्साट्रैक’ कहा जाएगा। यह वाहन लंबी दूरी तय करने के दौरान धरती सतह जैसी ग्रेविटी पैदा करेगी। कम ग्रेविटेशन में सफर करने पर इंसानों को कई प्रकार के परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ट्रेनों में हेक्सागोनल आकार के कैप्सूल भी होंगे जिन्हें ‘हेक्साकैप्सूल’ कहा जाएगा और बीच में एक मुविंग डिवाइस भी होगी।

दो तरह के कैप्सूल बनाए जाएंगे, एक पृथ्वी से चांद पर जाने के लिए और दूसरा पृथ्वी से मंगल पर जाने के लिए। चांद वाले कैप्सूल का रेडियस 15 मीटर होगा, वहीं मंगल पर जाने वाले कैप्सूल का रेडियस 30 मीटर होगा। यह कैप्सूल सफर के दैरान 1G ग्रेविटेशन बरकरार रखेगा। चांद पर मौजूद स्टेशन गेटवे उपग्रह का उपयोग करेगा और इसे चंद्र स्टेशन के रूप में जाना जाएगा, वहीं मंगल पर रेलवे स्टेशन को मंगल स्टेशन कहा जाएगा। यह मंगल ग्रह के उपग्रह फोबोस पर स्थित होगा। मानव अंतरिक्ष विज्ञान केंद्र के मुताबिक अर्थ स्टेशन को टेरा स्टेशन कहा जाएगा।

Show More

Related Articles

Back to top button