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ये हैं ‘सब्जी वाले जज साहब’, जानें क्या है इनकी दिलचस्प कहानी; कैसे पाया यह मुकाम

भोपाल. ‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता…’। यही कहानी है एक सब्जी वाले जज साहब की। मेहनत के दम पर इसने मुफलिसी को हरा दिया, दिया अब कामयाबी का सुख बांटने के लिए मां का साया सिर पर नहीं है। जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई है कि कोई किसी की कमी को पूरा नहीं कर सकता, लेकिन दिलासा जरूर दे सकता है। इस दर्द को यहीं फुल स्टॉप लगाते हुए आइए एक सब्जी वाले से जज बनने की कहानी का इंजॉय करते हैं, जिससे कि हालात के आगे घुटने टेक देने वाले लाखों-करोड़ों लोगों को प्रेरणा मिले-हिम्मत मिले। इनकी जिंदगी से हर किसी को एक ही प्रेरणा मिलती है कि हमें निरंतर लगे रहना चाहिए। याद रखें-लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती…

मेहनत की प्रतिमूर्ति यह शख्स मध्य प्रदेश के सतना का रहने वाला है। नाम है शिवकांत कुशवाहा। भले ही पांचवें प्रयास में सही, लेकिन अब यह सिविल जज के लिए सलैक्ट हो चुके हैं। अपनी कामयाबी की कहानी शिवकांत बताते हैं, ‘मैं पढ़ाई में बहुत होशियार नहीं हूं। बस सोचता था कि पढ़कर एक दिन घर की गरीबी दूर करनी है। मैंने संघर्ष को ही जीवन मान लिया था। यहां तक कि मेरे पास किताब खरीदने तक के पैसे नहीं थे। मेरे दोस्त मदद कर दिया करते थे।

नहीं भूलता वह हादसा

एक दिन अम्मा ने आटा खरीदने के लिए पैसे दिए थे। मैं आटा लेकर लौट ही रहा था कि तूफान आ गया। तेज बारिश होने लगी। स्ट्रीट लाइट बंद हो गई तो मैं पुल के पास छिपने लगा। इसी बीच पैर फिसला और मैं पुल से गिर गया। सारा आटा पानी में बह गया। मैं बेहोश हो गया। रात के साढ़े 10 बजे अम्मा खोजते हुए पहुंची। होश आने पर घर पहुंचने के बाद बस यही सोचता रहा कि क्या करूं, जिससे घर की गरीबी दूर हो जाए।

ध्यानयोग ने दी ताकत, कोरोना संक्रमणकाल बना खास मौका

घर वाले कहते थे कि पढ़ाई-लिखाई छोड़ काम-धाम में लग जा। कोई एग्जाम निकलने वाला नहीं है, लेकिन मैडिटेशन ने काफी मदद की। मैं सुबह तीन बजे उठकर मैडिटेशन किया करता था। असल में स्कूल में जब पढ़ता था तो घर के पास ही आध्यात्मिक संस्था ब्रह्मकुमारी का केंद्र था। वहां कोकिला बहन ने मुझे राजयोग सिखाया। पढ़ाई साथ-साथ मैं घर की कमजोर आर्थिक को दूर करने में परिवार का हाथ बंटाता था। होटल चला रहे पिता जी के उनके साथ काम करने लग गया। कुछ दिन बाद होटल बंद हो गया तो मैंने गन्ने के रस का ठेला लगाया। एक दिन जूस निकालते वक्त उंगली कट गई, जिसके बाद मुझे ठेला बंद करना पड़ा। कैंसर के चलते अम्मा का निधन हो गया। बाद में जैसे-तैसे सरकार स्कॉलरशिप देती थी, जिससे पढ़ाई पूरी हुई। बकौल शिवकांत, ग्रेजुएशन के अंत में मेरी मुलाकात एक जज साहब से हुई। उन्होंने LLB करने की सलाह दी। 2010 में LLM किया। इसके बाद लगातार परीक्षा की तैयारी में लगा रहा। चार बार नाकाम होने के बाद भी मेरा खुद पर और संविधान से विश्वास कम नहीं हुआ।

शिवकांत का कहना है कि कोरोना का संक्रमणकाल उनके लिए अवसर बनकर आया। असल में इन दिनों वह सब्जी का ठेला लगाया करते, लेकिन लॉकडाउन के समय दुकानें जल्दी बंद करा दी जाती। इससे पढ़ने के लिए ज्यादा समय मिला। प्री और मेन की परीक्षा घर से ही पढ़कर पास की। इंटरव्यू के लिए कुछ लोगों से सहायता ली। अब इन्हें OBC कैटेगरी में दूसरा स्थान हासिल हुआ है।

एक संदेश कामयाबी की चाह रखने वालों के लिए

सिविल जज के लिए चयन होने के बाद बहुत खुश हूं। मुझे विश्वास था कि कामयाबी जरूर मिलेगी। पिता जी, पत्नी, परिचित लोग, गांव वाले बेहद खुश हैं। यही संदेश देना चाहता हूं कि खूब पढ़ाई कीजिए। खुद पर विश्वास रखिए। समाज के वो बच्चे, जिनके पास पैसे नहीं हैं, सुविधाएं नहीं हैं, पहाड़ों में रहते हैं, जिनके माता-पिता किसान हैं, अगर वो ईमानदारी और सच्चाई के साथ पढ़ाई करें, तो समाज का नाम रोशन कर सकते हैं।

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