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कर रहे हैं पवित्र श्री मणिमहेश जाने की तैयारी तो पहले पढ़ लें ये खास एडवाइजरी

राजेन्द्र ठाकुर/चंबा

सावन का महीना बीत चुका है और अब श्रीकृष्ण जन्माटमी पर्व तो फिर इसके बाद श्रीराधा अष्टमी पर्व भी दूर नहीं हैं। भोले बाबा के भक्तों के लिए ये 17 दिन बड़े ही खास होते हैं। बात हो रही है पवित्र मणिमहेश धाम यात्रा (Manimahesh Yatra 2024) की। इसको लेकर स्थानीय प्रशासन ने एक स्पैशल एडवाइजरी जारी की है। बेहतर होगा, अगर श्रद्धालु इस एडवाइजरी को ध्यान में रखकर अपनी आगे की तैयारी करेंगे।

ये है पवित्र मणिमहेश धाम की महता

बता दें कि हिमाचल प्रदेश में बुद्धिल घाटी में भरमौर से 21 किलोमीटर दूर स्थित पवित्र मणिमहेश झील प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थानों में से एक है। कैलाश की 18,564 फीट की अजेय चोटी के नीचे 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस पवित्र झील पर हर साल भादों महीने में हल्के अर्द्धचंद्र आधे के आठवें दिन एक मेले का आयोजन होता है। इस मेले के अधिष्ठाता देवता भगवान शिव हैं। कैलाश पर शिवलिंग के रूप में एक चट्टान और इस पर्वत के आधार पर स्थित बर्फ के मैदान को स्थानीय लोग शिव का चौगान कहते हैं। एक कहानी है कि एक बार एक गद्दी ने भेड़ों के झुंड के साथ पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश की, लेकिन वह और उसकी भेड़ें पत्थर बन गई। एक और किंवदंती के अनुसार एक सांप ने भी इस चोटी पर चढ़ने की कोशिश की तो उसका हाल भी चरवाहे वाला ही हो गया। माना जाता है कि कैलाश की चोटी के दर्शन तब ही हो सकते हैं, जब भगवान शिव प्रसन्न हैं। खराब मौसम को भगवान की नाराजगी माना जाता है। मणिमहेश झील के एक कोने में भगवान शिव की संगमरमर की एक छवि है। झील और उसके आस-पास का परिदृश्य अत्यंत मनोरम है। झील के शांत पानी में बर्फ की चोटियों का प्रतिबिंब नजर आता है, जो इस तीर्थ का सबसे बड़ा उत्सव का कारण माना जाता है। पवित्र जल में स्नान करने के बाद तीर्थयात्री झील के चारों ओर तीन बार जाते हैं।

कैसे पहुंचा जाता है पवित्र मणमहेश झील तक?

मणिमहेश झील तक आने के कई रास्ते हैं। लाहौल-स्पीति के तीर्थयात्री कुगति पास से आते हैं। कांगड़ा और मंडी के यात्री कवारसी या जलसू पास से आते हैं। इसके अलावा चम्बा-भरमौर का भी एक रास्ता है, जो सबसे सुगम है। अब यहां के हड़सर तक बसें आती-जाती हैं। इसके बाद मणिमहेश पहुंचने से पहले धन्चो नामक स्थान पर तीर्थयात्री रात बिताते हैं। यहां एक मनोरम झरना है। मणिमहेश झील से करीब एक किलोमीटर पहले गौरी कुंड और शिव खौड़ी नामक दो जलाशय हैं, जिनमें माता गौरी और भगवान शिव के द्वारा स्नान किए जाने की मान्यता है। इन दोनों कुंडों में स्नान (महिला तीर्थयात्री गौरी कुंड में और पुरुष तीर्थयात्री शिव खोड़ी में) के पश्चात ही मणिमहेश के लिए आगे बढ़ते हैं।

क्या करना चाहिए श्रद्धालुओं को?

अब जबकि 26 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को छोटे स्नान और 11 सितंबर को श्रीराधा अष्टमी पर बड़े स्नान के रूप में पवित्र मणिमहेश यात्रा का आयोजन किया जा रहा है तो इसमें शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए चम्बा प्रशासन ने एक विशेष हिदायत जारी की है। भरमौर के एडीएम कुलबीर सिंह राणा ने कहा कि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान आदि से आने वाले श्रद्धालु विशेष सावधानी बरतें। उत्तर भारत की सबसे अधिक दुर्गम इस धार्मिक यात्रा को कोई भी यात्री हल्के में न ले। सबसे पहले यात्रा के लिए अपना पंजीकरण करवाएं। गर्म या मैदानी भागों से आए यात्री सीधे भरमौर-हड़सर से यात्रा शुरू कर देते हैं, जो स्वास्थ्य के लिहाज से ठीक नहीं है। अपने आप को यहां वातावरण के अनुकूल ढालने के लिए चंबा और भरमौर में जरूर रुकें। पहाड़ी इलाके में गाड़ी चलाते वक्त हद से ज्यादा सावधान रहें। एक तो रात में सफर न करें और दूसरा ऊंचे गियर में गाड़ी न चलाएं। जगह-जगह लगे दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित बनाएं। नदी-नालों में बिल्कुल न उतरें। अपने साथ गर्म कपड़े, टॉर्च, छाता और रेनकोट जरूर रखें तो स्वास्थ्य जांच भी जरूर करवाएं। हड़सर गांव से ऊपर चढ़ते समय ऐसे जगहों पर बिल्कुल ना रुकें, जहां पत्थर गिरने की संभावना हो। इसी के साथ यात्रा के दौरान गंदगी फैलाकर पाप के भागीदार न बनें। इसके बहुत सी बातों को विस्तार से समझने और किसी आपात स्थिति से निकलने के लिए कंट्रोल रूम के लैंडलाइन नंबर 01895-225027 पर संपर्क किया जा सकता है।

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