अंग्रेजों के जमाने में शुरू हुई ये अजीब प्रथा तय करती है दुल्हन का Character, Fail हुई तो जिंदगी बन जाती है नर्क
आज हम कहने को तकनीकी युग और रिश्तों की उन्मुक्तता (Article 377) के बीच जी रहे हैं, लेकिन बावजूद हमारे समाज में एक ऐसा चलन है, जिसकी वजह से हजारों लड़कियां अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठी हैं। इस अजीब से चरित्र प्रमाण पत्र (Character Cerifiacte) का नाम है कुकड़ी प्रथा। यह प्रथा पर्दा प्रथा, सति प्रथा, बाल विवाह प्रथा और दहेज प्रथा से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो रही है हमारे समाज के लिए, लेकिन चलन में है। वैसे यह भी बड़ी सच्चाई है कि आजकल के युवा यही नहीं जानते कि आखिर यह कुकड़ी प्रथा है किस बला का नाम। शब्द चक्र न्यूज इस खतरनाक सामाजिक बुराई के बारे में विस्तार से बता रहा है कि यह कब कैसे शुरू हुई थी और आज के दौर में क्यों घातक है। असल में यह विवाह के बाद कौमार्य परीक्षण (Virginity Test) की परम्परा है, जिसमें युवती के फेल होने का खामियाजा उसके मां-बाप को जुर्माना भुगतना पड़ता है। आइए जानते हैं क्या है ये…
- बता दें कि हाल ही में राजस्थान के भीलवाड़ा से एक विवाहिता को कुकड़ी प्रथा के बाद प्रताड़ित किए जाने का मामला सामने आया है। 24 साल की यह युवती उन्हीं छोटी सोच के ससुराल वालों की प्रताड़ना शिकार है, जिनकी अपनी बेटी एक साल पहले इसी प्रथा का नतीजा आने के बाद आत्महत्या (Suicide) कर चुकी है। उस वक्त इसी परिवार ने इस प्रथा को एक गलत चलन बताया था। बहरहाल, स्थानीय पुलिस ने महिला के ससुर और पति के समेत कई लोगों के खिलाफ केस दर्ज करके आगे की कार्रवाई शुरू दी है। अब सवाल उठता है कि आखिर यह कुकड़ी प्रथा है क्या? इसे कैसे और क्यों निभाया जाता है और इसका बुरा नतीजा आया तो क्या होता है?
- दरअसल, कुकड़ी प्रथा अंग्रेजों के राज में शुरू हुई थी। यह वह वक्त था, जब जिसकी लाठी उसकी भैंस की तर्ज पर किसी की भी बहन-बेटी या बहू के साथ बलात्कार हो जाता था और दुराचारी अंग्रेजों से टकराने की हिम्मत किसी की नहीं होती थी। दूसरी ओर यह बात भी उतनी ही कड़वी है कि जूठन कोई नहीं खाना चाहता, मतलब हर किसी को एकदम कोरी-करारी कुंवारी लड़की (Untouched Girl) चाहिए। इसी के चलते इस प्रथा का चलन शुरू हुआ था।
- कुकड़ी प्रथा दक्षिण एशियाई देशों में बड़े स्तर पर निभाई जाती है, लेकिन भारत की बात करें तो राजस्थान में सांसी समाज और महाराष्ट्र में कंजारभाट समाज में इसका चलन है। कुछ इलाकों में मुसलमान भी इस प्रथा को बहुत मानते हैं।
- कुकड़ी प्रथा दिन में मनाई जाने वाली सुहागरात होती है, जिसमें कमरे में जब वर-वधु का शारीरिक मिलन हो रहा होता है तो बाहर परिवार के लोगों की पूरी फौज मंडराती रहती है। अंदर सफेद रंग की दो चीजों के साथ इस काली करतूत की शुरुआत होती है। एक तो बिस्तर पर एकदम नई सफेद चादर बिछाई जाती है और दूसरा एक कुकड़ी (चरखे से काते गए सफेद सूत की गांठ) उस दौरान रखी जाती है।
- बाद में घर वाले जांच करते हैं। चादर पर खून के धब्बे मिलें तो दुल्हन को कौमार्य परीक्षण (Virginity Test) में पास घोषित किया जाता है। इतना ही नहीं दुल्हन को अपनी योनी से निकला खून कुकड़ी पर भी लगाना होता है। फिर ससुराल और मायके वाले दोनों परिवार को खून लगा सफेद कपड़ा और कुकड़ी दिखाई जाती है। सबूत के तौर पर सफेद कपड़ा मायके वालों के पास रहता है तो कुकड़ी ससुराल पक्ष के पास ही रहती है।
- …और अगर सफेद चादर पर खून के धब्बे न मिलें तो दूल्हा चिल्ला-चिल्लाकर सबको बताता है कि यह लड़की, जो उसके माथे मढ़ी गई है यह चरित्रहीन (Characterless) है। किसी गैर के साथ पहले ही मुंह काला कर चुकी है। ससुराल वाले दुल्हन के कपड़े उतारकर उसे तब तक पीटते हैं, जब तक कि वह अपने आशिक का या फिर किसी तरह की जोर-जबरदस्ती की घटना को अंजाम देने वाले का नाम न बता दे।
- इसके बाद जाति की पंचायत बैठती है, जिसमें लड़की के परिवार पर कम से कम 5 लाख रुपए या हैसियत के हिसाब से और ज्यादा का जुर्माना लगा दिया जाता है। हालांकि जुर्माने से बचने और अपने पवित्रता साबित करने के लिए लड़की को दो और मौके दिए जाते हैं।