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Media Politics: बठिंडा प्रेस क्लब के चुनाव में पुलिस वालों और नेताओं ने दिखाया भ्रष्टाचार, क्या हक बचा पाएंगे मदद से चुने गए ये पत्रकार?

बठिंडा. सोशल मीडिया पर इन दिनों एक बड़ी ही रोचक चर्चा है। अगर इस चर्चा पर गौर करें तो स्वस्थ लोकतंत्र की नींव का चौथा स्तंभ कहलाने वाला मीडिया अब मीडिया नहीं, बल्कि नेताओं की रखैल बना नजर आता है। मामला हाल ही में एक सप्ताह पहले हुए बठिंडा प्रैस क्लब (Bathinda Press Club) के चुनाव का है। आरोप है कि इसमें पुलिसगीरी और नेतागीरी खूब हावी रही। नतीजा यह हुआ कि जनता के हित की राजनीति में नकारी जा चुकी पार्टी शिरोमणि अकाली दल अपने एक चहेते को निर्वाचित करवाने में कामयाब रही। अब सोचने वाली बात है कि इस भ्रष्टाचार में रत्तीभर भी सच्चाई है तो क्या ऐसे पत्रकार जनहित की पत्रकारिता कर पाएंगे? क्या ये लोग जनहित की पत्रकारिता करने वालों के हकों की रक्षा कर पाएंगे?

दरअसल, एक सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कोमल जोत (Komal Jot) नामक एक शख्स ने एक पोस्ट डाली है। इस पोस्ट में कोमल जोत ने खुलकर लिखा है, ‘लोगों ने बादल परिवार को विधानसभा और लोकसभा चुनाव में तो नकार दिया है और अब बादल परिवार प्रेस क्लब की चुनाव लड़ रहा है। अभी-अभी हुई बठिंडा प्रेस क्लब की चुनावों में बादल परिवार के एक करीबी व्यक्ति ने खुलकर दखलंदाजी की है’।

बठिंडा प्रेस क्लब के चुनाव में पुलिस वालों और नेताओं ने दिखाया भ्रष्टाचार, क्या हक बचा पाएंगे मदद से चुने गए ये पत्रकार?

इस पोस्ट की पड़ताल करते हुए शब्द चक्र न्यूज ने पाया कि यह पोस्ट बीती 7 अगस्त को बठिंडा प्रेस क्लब की टीम का चुनाव करते वक्त हुए भ्रष्टाचार पर आपत्ति के रूप में की गई है। आरोप है कि बठिंडा प्रेस क्लब के चुनाव में एक उम्मीदवार को जिताने के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त कई पुलिस अफसरों और राजनेताओं ने पूरा जोर लगा दिया। खूब दखलंदाजी की। पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (SAD) के प्रधान और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल (Former Deputy CM Sukhbir Singh Badal) के एक सलाहकार पत्रकार ने अपने चहेतों को जिताने के लिए जोर लगाया। आरोप यह भी है कि भ्रष्टाचार में लिप्त बठिंडा के कुछ अफसरों ने अपने चहेते को जिताने के लिए दूसरे पत्रकारों को लालच भी दिया और डराया भी। अब लोगों में यह चर्चा है कि अगर प्रेस क्लब के चुनावों में भ्रष्टाचार में लिप्त पुलिस अफसर और राजनेता दखलअंदाजी करेंगे तो प्रेस (Press) इस तरह आजाद रह सकेगी। जल्द ही ऐसे पुलिस अफसरों और राजनेताओं की मदद लेने वाले पत्रकारों की पोल खुलनी समय की मांग है।

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