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Mother’s Day Special: हाथ कटा तो पति छोड़ गया, फिर बेटे को बना डाला इंजीनियर

अमृतसर. मां की महिमा का तो वेद-पुराण भी बखान नहीं कर सके, फिर हमारी-आपकी तो औकात ही क्या है। दुनिया की लगभग हर मां अपनी औलाद के लिए अपना बेहतर देने की कोशिश करती है, मगर आज मातृ दिवस (Mother’s Day) पर हम एक ऐसी मां की कहानी से रू-ब-रू करा रह हैं, जिसने पूरा शरीर नहीं होते भी हार नहीं मानी। पहले खुद एक कामयाब एथलीट बनी और फिर भांति-भांति के संघर्ष से गुजरकर बेटे को इंजीनियर बना डाला। आइए जानते हैं क्या है इनकी शख्सियत…

अमृतसर पुतलीघर क्षेत्र में रहने वाली वीणा अरोड़ा बताती हैं कि वर्ष 2000 में बीमार हो जाने पर डॉक्टर ने इंजैक्शन लगाया था। उसके बाद संक्रमण इतना बढ़ गया कि दाहिना हाथ काटने की नौबत आ गई। हाथ खोने का गम इतना नहीं था, जितना पति के छोड़कर जाने के बाद हुआ। अक्सर अपनी ही परेशानी लेकर बैठ जाने के चलते सोचते-सोचते ख्याल आया कि अगर ऐसे ही चला तो बेटे का क्या होगा। बीते बुरे वक्त को भुलाकर वर्तमान में जीने की कोशिश शुरू की। 2010 में किसी काम से दिल्ली जाना हुआ तो वापसी में स्टेशन पर पहुंचते ही अमृतसर आने वाली ट्रेन चल पड़ी। मुझे ट्रेन के साथ दौड़ते देख एक युवक ने हाथ पकड़ा और ट्रेन में चढ़ा दिया। मेरा दायां हाथ कटा देखकर पूछा और मेरी ट्रैजडी को जानकर उसने मेरा हौसला बढ़ाया। मुझे पैरा स्पोर्ट्स में एंट्री करने की सलाह दी। 2012 में मैंने दिल्ली में स्थित जवाहर लाल नैहरू स्टेडियम में पैरा स्पो‌र्ट्स की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी।

बकौल वीणा, मैंने 2013 में बैंगलुरू में शॉटपुट में पंजाब के लिए स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2015 में गाजियाबाद में शॉटपुट में गोल्ड, डिस्कस थ्रो में कांस्य पदक और जैवलिन थ्रो में कांस्य पदक जीता। 2016 में नैशनल पैरा एथलैटिक्स चैंपियनशिप में 1500 मीटर दौड़ और डिस्कस थ्रो में रजत पदक जीते। 2017 में शिमला में नैशनल ताइक्वांडो प्रतियोगिता में गोल्ड जीता। देश ही नहीं विदेश में भी उपलब्धियां अर्जित की। 2014 में साउथ कोरिया में पैरा एशियन्स गेम्स में डिस्कस थ्रो में कांस्य पदक जीता। 2017 में पूर्तगाल में शॉटपुट में कांस्य और 2019 में कनाडा में स्वर्ण पदक जीता। चीन में होने वाली पैरा एशियन्स गेम्स में वीणा का नाम शामिल है। इन उपलब्धियों को देखते हुए 2019 में पंजाब सरकार ने महाराजा रणजीत सिंह अवार्ड से नवाजा।

अकेले खेल से घर नहीं चलता तो ऐसे एक सवाल पर वीणा बताती हैं कि बेटे की अच्छी परवरिश के आत्मनिर्भरता जरूरी थी। इसके लिए उन्होंने प्रिंटिंग का कारोबार शुरू किया। हालांकि पिता और भाइयों ने हर कदम पर साथ दिया। इसी मेहनत के दम पर आज वीणा का बेटा नक्श बैंगलुरू की एक आईटी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।

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