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World No-Tobacco Day: पंजाब के इन 12 गांवों में बीड़ी, सिगरेट या तंबाकू की दूसरी चीज देखने को भी नहीं मिलती; जानें कैसे मुमिकन हुआ ये

तरनतारन/गुरदासपुर. इस बात में कोई दो राय नहीं कि देश का सरहदी सूबा पंजाब और इसके पाकिस्तान की सीमाओं को छूते जिलों में हर तरह के नशे का कारोबार चरम पर है। सबसे ज्यादा तो चिट्टे (हैरोइन) के नशे ने पंजाब की जवानी को खोखला कर रखा है। दूसरी ओर इसी उड़ते पंजाब के सरहदी इलाके में कई गांव ऐसे भी हैं, जहां आपको चिट्टाेऔर स्मैक जैसे नशे करता आदमी मिलना तो दूर कोई बीड़ी-सिगरेट भी पीता नजर नहीं आएगा। इतना ही नहीं गांव में किसी भी तरह का कोई तम्बाकू उत्पाद नहीं बिकता। अब आप सोच रहे होंगे कि यह सब आखिर मुमकिन कैसे है तो इसका जवाब विश्व तंबाकू निषेध दिवस (World No-Tobacco Day) पर शब्द चक्र न्यूज का यह खास आर्टिकल है। आइए दुनिया के लिए प्रेरणा बने पंजाब ऐसे ही 12 गांवों की कहानी से आपको रू-ब-रू कराते हैं…

पाकिस्तान की सीमा से सटे अमृतसर और तरनतारन जिलों के 418 गांवों में से 10 गांव नशामुक्त हो चुके हैं। बीते वर्षाें कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब की कॉन्ग्रेस सरकार के नशाखोरी रोकथाम अधिकारी कार्यक्रम (DAPO) के तहत नशामुक्त घोषित हो चुके इन गांवों भगवानपुरा, गिल पत्तन, थेह कलां, हुंदल, दाऊदपुरा, कालिया, मियांवाल, कलंजर उत्ताड़, मनावां और मस्तगढ़ में नशे की एंट्री रोकने में पंचायतों का अहम रोल रहा है।

दरअसल, 10 हजार से ज्यादा आबादी वाले बॉर्डर के आखिरी गांव कालिया के पूर्व सरपंच हरजीत सिंह और सरपंच हरबंस सिंह के मुताबिक 5 साल पहले गांव को नशामुक्त करार दिया जा चुका है। इससे पहले यहां करीब 25 से 30 युवक नशे की दलदल में फंसे हुए थे। लगभग 6 साल पहले 25 साल के एक युवक की मौत भी हो गई। इतना ही नहीं, गांव में स्मैक की होम डिलीवरी भी होने लग गई थी। नशे के चक्कर में फंसे एक युवक की तीन एकड़ जमीन भी बिक गई थी। इसके बाद पंचायत और गांव वालों की हिम्मत की वजह से युवाओं को न सिर्फ नशे की लत से बाहर निकाला गया, बल्कि नशे की बिक्री भी बंद करवाई गई। पंचायत गांव के हर नुक्कड़ पर नजर रखती है और अजनबी से पूछताछ भी की जाती है।

खेमकरन बॉर्डर से सिर्फ 6 किलोमीटर पहले ढाई हजार के करीब की आबादी वाले गांव कलंजर उताड़ को भी दो साल पहले ही नशामुक्त घोषित किया गया है। सरपंच रह चुके अवतार सिंह के मुताबिक पास के एक गांव से चलकर नशे का कोढ़ यहां तक आ पहुंचा था। 12 साल पहले गांव में दो व्यक्ति ही स्मैक का सेवन करते थे, फिर अन्य कई भी नशीली गोलियों वगैरह के चक्कर में फंस गए। सरकार की तरफ से DAPO बनाए जाने के बाद पंचायत ने गांव वालों के साथ मिलकर सख्ती शुरू कर दी। वहीं पुलिस ने भी नशा खत्म करने के लिए जीतोड़ मेहनत की। इसी तरह सरहद से ठीक 2 किलोमीटर पहले स्थित गांव मस्तगढ़ में नशा तो दूर अवैध शराब की बिक्री पर भी पूरी तरह से पाबंदी है। नंबरदार दलजीत सिंह और गांव के बलबीर सिंह, चणन सिंह के मुताबिक आज तक इस गांव में नशे की एंट्री ही नहीं होने दी गई है। गांव में कोई गुटबाजी न होने और मजबूत पंचायत की वजह से यहां नशे का कोई प्रभाव नहीं है।

इतिहास पर गौर करें तो गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख को मुकम्मल रूप प्रदान करने के लिए (खालसा) यानि संत और सिपाही बनाया। आदर्श आचार संहिता से अवगत कराया था। इसके तहत जिन चार कुरीतियों से दूर रहने को कहा था, उनमें एक है, शराब, तंबाकू या किसी कभी प्रकार का दूसरा नशा। इससे दूर रहने की सख्त हिदायत के बाद ही गुरु जी ने पांच तीर देकर बाबा बंदा सिंह जी बहादुर को पंजाब में राज्य स्थापित करने का आदेश दिया।

गुरदासपुर के 2 गांवों में 80 फीसदी आबादी अमृतधारी

अब थोड़ा साथ लगते जिले गुरदासपुर की तरफ बढ़ते हैं। जिले में मेहता से श्री हरगोबिंदपुर सड़क पर पास पास बसे बटाला इलाके के 2200 के करीब आबादी वाले दो गांवों नवां पिंड मल्लियांवाल और बलरामपुर की एक ही पंचायत है। इन दोनों गांवों में चिट्टा, स्मैक जैसे नशे करता आदमी गांव में मिलना तो दूर को बात, गांव की दुकानों पर बीड़ी, सिगरेट या तंबाकू भी आपको बिकता नहीं मिलेगा। गांव के पूर्व सरपंच हरजिंदर और बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि पिछले 18-19 साल में दोनों गांवों में गांव के किसी एक भी व्यक्ति के खिलाफ नशा बेचने या करने के आरोप में एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। यहां तक कि दोनों गांवों के लोग लड़ाई-झगड़े से भी कोसों दूर हैं। यह गर्व की बात है। जहां तक इनके इतिहास की बात है, 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के वक्त पाकिस्तान से आए सिखों ने ये गांव बसाए थे। ग्रामीणों के मुताबिक नवां पिंड मल्लियांवाल और बलरामपुर गांवों की  है और यहां 80 प्रतिशत से ज्यादा सिख आबादी पवित्र अमृत छक कर अमृतधारी बन चुकी है। इसके अलावा बाकी 20 फीसदी के करीब लोग भी अलग-अलग धार्मिक डेरों से नामदान लिए हुए हैं। यहां अमृत संचार के पीछे पिपली वाले संत की बड़ी भूमिका रही है। यही वजह है कि इन दोनों गांवों में शराब तक का नशा करने वाला एक भी आदमी ढूंढना मुश्किल है।

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