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Double MA इस बेवकूफ ने किया ऐसा कांड, कोई अपनी बेटी का नाम Shabnam नहीं रखता

अमरोहा. आदमी प्यार सॉरी हवस में कितना अंधा हो जाता है, इसका अंदाजा उत्तर प्रदेश के अमरोहा की एक कहानी से लगाया जा सकता है। शबनम नाम की एक लड़की कहने को तो डबल MA थी, पर इसने महज पांचवीं फेल यार के लिए ऐसा कांड किया कि अब उसके गांव में कोई भूलकर भी अपनी बेटी का नाम शबनम नहीं रखता। उसने यार के लिए अपने ही मां-बाप समेत परिवार के 7 लोगों की वहशियाना तरीके से जान ले ली थी। जब कोर्ट ने न्याय किया और इसे फांसी की सजा का हकदार माना तो अब फांसी की बजाय उम्रकैद मांग रही है। सोचना चाहिए, जब खुद रहम का र भी नहीं जानती तो फिर अब रहम क्यों चाहिए। सूबे में हाल में दो दिन पहले कुछ ही घंटे के भीतर तीन शहरों में 10 से ज्यादा मर्डर होने के बाद पुरानी यादें ताजा कराने के लिए इस खौफनाक कहानी से रू-ब-रू करवा रहा है। Killer Lady सीरीज के तहत ऐसी ही कई और भी कहानियां आपके लिए हम लेकर आ रहे हैं। आइए पहली कड़ी में जानें शोला बनी शबनम की कहानी को थोड़ा तफसील से समझते हैं…

वारदात को 15 अप्रैल 2008 को अमरोहा के बावनखेड़ा गांव में अंजाम दिया गया था। रौंगटे खड़े कर देने वाला है वह मंजर, जब रात 1 बजे का वक्त था। शबनम अपने यार सलीम के साथ मिलकर अपने परिवार के छह लोगों की हत्या कर चुकी थी। तभी 11 महीने का एक बच्चा रोने लगा। शबनम ने सलीम को फोन करके बुलाया तो सलीम ने आने से इनकार करते हुए उसे खुद ही मार देने को कहा। इसके बाद शबनम ने बच्चे का गला तब तक दबाए रखा, जब तक कि वह मर नहीं गया।

जहां तक इस खौफनाक अंजाम के पीछे की वजह की बात है, बावनखेड़ा में प्रोफेसर शौकत बड़ी ही शान-ओ-शौकत के साथ अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे थे। एक बेटा इंजीनियरिंग तो दूसरा MBA कर चुका था। बेटी शबनम ने भी पहले इंग्लिश से फिर भूगोल से MA की। वह भी पिता की ही तरह लेक्चरर बनना चाहती थी, लेकिन रास्ते से भटक गई। गांव के ही पांचवीं फेल सलीम से न जाने कब उसे लगाव हुआ और दोनों छिप-छिपकर मिलने लगे। प्यार हवस में बदला तो शबनम प्रेग्नेंट हो गई। हालांकि, इस बात का खुलासा बहुत बाद में हुआ। दोनों की करीबी की बात शबनम के घर तक पहुंची तो पिता शौकत और दोनों भाइयों ने ऐतराज जताया। लाख समझाइश के बावजूद शबनम सलीम को पाने तो घर वाले उसे भुलाने की जिद पर अड़े रहे। सबको ठिकाने लगाकर सलीम को पाने की जिद में शबनम ने सलीम से 13 अप्रैल 2008 को बाजार से जहर मंगवाया। 14 अप्रैल की दोपहर दोनों भाई शहर के लिए निकले तो शबनम ने फोन करके जहां पहुंचे, वहीं से लौट आने को कहा। वो दोनों आ भी गए। पहले खाने में जहर मिलाने की साजिश नाकाम रही क्योंकि खाना शबनम की भाभी और मौसी की बेटी ने मिलकर बनाया। रात 9 बजे सभी ने खाना खा लिया तो एकाएक शबनम ने चाय की पूछी। हां होने पर उसने उबलती चाय में जहर की पुड़िया खोल दी। चाय पीने के बाद सभी सभी का दम घुटने लगा और मर गए। हालांकि जहर पर यकीन नहीं कर रही शबनम ने सलीम को फोन करके बुलाया, जो एक कुल्हाड़ी लेकर आया। उसने पहले शौकत के सीने पर कुल्हाड़ी मारी। फिर मां को, तो फिर दोनों भाइयों, भाभी और मौसी की लड़की को कुल्हाड़ी से काट डाला। मौका-ए-वारदात से फरार हो सलीम ने कुल्हाड़ी को रास्ते में एक तालाब में फैंक दिया। यही वो रात 1 बजे का वक्त था, जब सलीम के फोन की घंटी बजी और सातवीं जान शबनम ने ली। इसके बाद रात करीब 2 बजे चीख-चीखकर रोने लगी। आसपास के लोग आए तो लूट के लिए हत्या की बात कह शबनम ने खुद को बाथरूम में होने की वजह से बची बताया। सुबह सूरज निकलने से पहले दस थानों की पुलिस फोर्स डॉग स्क्वाड पूरे गांव का चक्कर लगा रहे थे।

कानून व्यवस्था पर सवाल उठे तो तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती हेलीकॉप्टर से अमरोहा पहुंची। हालांकि मामले की जांच कर रहे इंस्पेक्टर आरपी गुप्ता ने मायावती के PA से शबनम को मुआवजा न देने की अपील की। चूंकि उस पर शक था। मांगी गई मोहलत के मुताबिक 16 अप्रैल को पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि जहर के असर की वजह से हत्या से पहले किसी ने कोई संघर्ष नहीं दिखाया।

इंस्पेक्टर आरसी गुप्ता को यहीं पहला प्वाइंट मिल गया, जब पूरा परिवार बेहोश था तो शबनम कैसे होश में थी? छत से लुटेरों के घुसने की बात की पहली ही लाइन तब झूठी साबित हो गई, जब पता चला कि छत पर जा रही सीढ़ी का दरवाजा तो अंदर से बंद है। फिर जमीन से छत की ऊंचाई 14 फीट पर थी। दीवार प्लास्टर की थी ऐसे में ईंट पकड़कर चढ़ पाने का भी कोई जरिया नहीं था। इंस्पेक्टर गुप्ता की नजर में शबनम आरोपी बनती जा रही थी, तभी किसी ने खबर दी कि सलीम को उठा लीजिए, सब पता चल जाएगा।

एक बार क्लीनचिट देने के बाद 17 अप्रैल को पुलिस ने सलीम को फिर से बुलाकर सख्ती बरती तो वह टूट गया। कुल्हाड़ी भी पुलिस ने बरामद कर ली। इसके अलावा पुलिस ने शबनम की कॉल डिटेल निकलवाई तो पता चला हत्या के पांच मिनट पहले और हत्याकांड के दस मिनट बाद शबनम ने सलीम को फोन किया था। पूरे महीने में 55 बार बात हुई थी।

अमरोहा की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने 3 अगस्त 2010 को सलीम और शबनम को फांसी सजा सुनाई। मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा तो वहां भी फांसी की सजा बरकरार रही। सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली तो राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को दया याचिका भेजी। वह भी अस्वीकार हो गई। शबनम के वकील सहर नकवी ने UP की गवर्नर आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखा, उसमें उन्होंने कहा, आज तक भारतीय इतिहास में किसी महिला को फांसी नहीं हुई है। शबनम को होगी तो पूरी दुनिया में भारत की बदनामी होगी। अतः शबनम की सजा को उम्रकैद में बदल दीजिए। गवर्नर ने इस मामले को UP सरकार को ट्रांसफर कर दिया, जहां से अभी तक कोई फैसला नहीं आया। सलीम प्रयागराज जिले की नैनी और शबनम रामपुर की जेल में बंद है।

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