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Supreme Court ने हरियाणा और पंजाब मिल-बैठकर करें SYL का हल; पूछा, ‘कब तक गूंगी गुड़िया बन रहेगा केंद्र’, 2 महीने में देना होगा हलफनामा

नई दिल्ली. पानी के बंटवारे को लेकर देश के सबसे बड़े मुद्दे सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL Canal) पर बुधवार को फिर से देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) में सुनवाई हुई। आज सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों की सरकारों पर सवाल उठाते कहा है कि दोनों राज्य भारत ही हिस्सा हैं। इस मसले का हल दोनों को ही बैठकर निकालना होगा। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूरे मामले में केंद्र मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकता, इसे सुलझाने के लिए सरगरम भूमिका निभाने के निर्देश दिए हैं। वहीं इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 2 महीने के अंदर हलफनामा मांगा है।

इस तरह से समझें SYL के पूरे मसले को-एकदम शुरुआत से

  • बता दें कि 1955 में रावी और ब्यास में बहने वाले पानी का आंकलन 15.85 मिलियन एकड़ फीट (MAF) किया गया। केंद्र सरकार ने राजस्थान, अविभाजित पंजाब और जम्मू कश्मीर के बीच एक बैठक कराई। ये नदियां इन्हीं तीनों राज्यों से गुजरती थी। तब राजस्थान को आठ MAF, अविभाजित पंजाब को 7.20 MAF और जम्मू कश्मीर को 0.65 MAF पानी आबंटित किया गया।
  • 1966 से चल रहा है, जब पंजाब और हरियाणा दोनों अलग-अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आए तो पंजाब के हिस्से के 7.2 MAF पानी में से 3.5 MAF हरियाणा को देने पर बात हुई, लेकिन पंजाब ने रावी और ब्यास नदियों का पानी हरियाणा के साथ बांटने का खुलकर विरोध किया।
  • 1981 में हुए पुनर्मूल्यांकन के बाद पानी का आंकलन बढ़कर 17.17 MAF हो गया। इसमें से पंजाब को 4.22 MAF, हरियाणा को 3.5 MAF और राजस्थान को 8.6 MAF पानी आबंटित हुआ। हालांकि ये बंटवारा कभी लागू नहीं हो सका।
  • 8 अप्रैल 1982 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हरियाणा और पंजाब के बीच पानी के बंटवारे को सिरे चढ़ाने के लिए पंजाब के पटियाला जिले के कपूरी गांव में सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL Canal) के निर्माण की आधारशिला रखी।
  • 214 किलोमीटर लंबी यह नहर पंजाब में बहने वाली सतलुज और हरियाणा से गुजरने वाली यमुना नदी को जोड़ने के लिए बननी थी। इसका 122 किलोमीटर लंबा हिस्सा पंजाब में तो 92 किलोमीटर हरियाणा में पड़ता है।
  • अकाली दल ने विरोध में आंदोलन कर दिया तो जुलाई 1985 में राजीव गांधी ने तत्कालीन अकाली दल प्रमुख संत हरचंद सिंह लौंगोवाल के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
  • 20 अगस्त 1985 को लौंगोवाल की उग्रवादियों ने हत्या कर दी। बावजूद इसके सुप्रीम कोर्ट के जज वी. बालाकृष्णन एराडी के नेतृत्व में ट्रिब्यूनल बना।
  • 1987 में सौंपी गई रिपोर्ट में इस ट्रिब्यूनल ने पंजाब के पानी के कोटे को बढ़ाकर 5 MAF कर दिया गया। हरियाणा का कोटा बढ़ाकर 3.83 MAF करने की सिफारिश की।
  • 1990 में SYL प्रोजैक्ट पर काम कर रहे चीफ इंजीनियर एमएल सेखड़ी और इंजीनियर अवतार सिंह औलख की हत्या कर दी गई। दो अलग-अलग मौकों पर मजदूरों की गोली मार दी गई। इसके बाद नहर का निर्माण रोक दिया गया।
  • 1996 में हरियाणा फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने 2002 को पंजाब को निर्देश दिए कि या तो एक वर्ष में एसवाईएल (SYL) नहर बनवाए या फिर इसका काम केंद्र के हवाले करे।
  • 2015 को हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ बनाने का अनुरोध किया। 2016 में 5 सदस्यों की संविधान पीठ ने पहली बार सभी पक्षों को बुलाया। 8 मार्च को दूसरी सुनवाई हुई। इसी बीच पंजाब में 121 किमी लंबी नहर को पाटने का काम शुरू हो गया। 19 मार्च तक सुप्रीम कोर्ट के यथास्थिति के आदेश देते हुए नहर पाटने का काम रुकवा दिया।
  • अगस्त 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों को अपने अधिकारियों की कमेटी बनाकर मामला सुलझाने के निर्देश देने के साथ साफ कर दिया कि अगर दोनों राज्य आपसी सहमति से नहर का निर्माण नहीं करते हैं तो फिर सुप्रीम कोर्ट खुद नहर का निर्माण कराएगा।
  • सुप्रीम कोर्ट के इस कड़े रुख पर 3 सितंबर 2019 को दोनों राज्यों की ओर से जवाब दिया जाना था, लेकिन दोनों राज्यों की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अब चार महीने का समय दे दिया।
  • इसके बाद भी कई बार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो चुकी है। 14 अक्टूबर 2022 को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से नहर का निर्माण करने की बात कही तो भगवंत मान ने बेरुखी से जवाब दिया, ‘जब पंजाब के पास हरियाणा के लिए पानी ही नहीं है तो फिर नहर निर्माण का सवाल ही नहीं उठता’।
  • यही वजह है कि आज तक पंजाब ने अपना काम आज तक पूरा नहीं किया और यह मसला लगभग 3 दशक से भी ज्यादा पुराना हो चुका है। अपने हिस्से की नहर बना चुका हरियाणा पानी की आस लगाए हुए है।

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